हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते
वे बोले दरबार सजाओ वे बोले जयकार लगाओ
वे बोले हम जितना बोलें तुम केवल उतना दोहराओ
वानी पर इतना अंकुश कैसे सहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते
वे बोले हम जितना बोलें तुम केवल उतना दोहराओ
वानी पर इतना अंकुश कैसे सहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते
वे बोले जो मार्ग चुना था, ठीक नही था बदल रहे हैं
मुक्तिवाही संकलप गुना था, ठीक नही था बदल रहे हैं
हमसे जो जयघोश सुना था, ठीक नही था बदल रहे हैं
हम सबने जो खवाब बुना था ठीक नहीं था बदल रहे हैं
मुक्तिवाही संकलप गुना था, ठीक नही था बदल रहे हैं
हमसे जो जयघोश सुना था, ठीक नही था बदल रहे हैं
हम सबने जो खवाब बुना था ठीक नहीं था बदल रहे हैं
इतने बदलावों मे मौलिक क्या कहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते
हमने कहा अभी मत बदलो, दुनिया की आशाऐं हम हैं
वे बोले अब तो सत्ता की वरदाई भाषाऐं हम हैं
वे बोले अब तो सत्ता की वरदाई भाषाऐं हम हैं
हमने कहा वयर्थ मत बोलो, गूंगों की भाषाऐं हम हैं
वे बोले बस शोर मचाओ इसी शोर से आऐ हम हैं
वे बोले बस शोर मचाओ इसी शोर से आऐ हम हैं
इतने मतभेदों में मन की क्या कहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते
है महाप्राण के वंशज चुप कैसे रहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते
है महाप्राण के वंशज चुप कैसे रहते
हमने कहा शत्रु से जूझो थोडे़ और वार तो सह लो
वे बोले ये राजनीति है तुम भी इसे प्यार से सह लो
हमने कहा उठाओ मस्तक खुलकर बोलो खुलकर कह लो
बोले इस पर राजमुकुट है जो भी चाहे जैसे सह लो
वे बोले ये राजनीति है तुम भी इसे प्यार से सह लो
हमने कहा उठाओ मस्तक खुलकर बोलो खुलकर कह लो
बोले इस पर राजमुकुट है जो भी चाहे जैसे सह लो
इस गीली ज्वाला मे हम कब तक बहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते
हम दिनकर के वंशज चुप कैसे रहते
है महाप्राण के वंशज चुप कैसे रहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते
हम दिनकर के वंशज चुप कैसे रहते
है महाप्राण के वंशज चुप कैसे रहते
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